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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन 1 । वाद-विवाद, पक्षापक्षी और मिथ्या ममत्त्वसे वे हमेशा दूर रहते हैं । उनमें ऐसी स्वच्छ सेवावृत्ति और ऐसी सर्वस्पर्शी प्रेम-भावना है कि, छोटे बड़े, दूरके पासके, ज्ञातिके, धर्मके और देश के सभी इनको अपना ही समझते हैं और अपने से जैसे सेवा लेनेका हक होता है वैसे ही इनसे सेवाएँ लेनके लिए सभी अधिकार बताते हैं और वीरचंदमाई जैसे बारिश सबजगह समानरूपसे बरसती है और सूरज समानरूपसे तपता है, वैसे ही, वे अपना तन, मन और धन सबकी सेवा में अर्पण करते आये हैं । और इस तरह उन्होंने सभी तरह के लोगोंका प्रेम संपादन किया है । ऐसे एक निर्मल सेवापरायण सज्जन इस कठिन समयमें बंबईकी संग्राम समितिके प्रमुख हुए हैं । इस बात से दोनों के गौरवमें अभिवृद्धि होती है और जैनसमाज और कांग्रेस अभिनंदनीय बनते हैं । इस समय राजनीति में भाग लेना काँटोंके आसन पर बैठ कर तपस्या करना है । यह तपस्या वही कर सकता है जिसने सब विकारोंको जीतकर बुद्धिको निर्मल बनाया है और जिसने सभी मयों और स्वार्थीको छेद कर सच्ची निर्भयता तथा वीरताको विकसित किया है। हमें आशा है कि, वीरचंदभाईने अपने सिर पर खास तरहकी अति विकट जवाबदारीका जो काम लिया है उसे वे पूरा करेंगे और देशके संग्रामको बड़े जोरके साथ आगे बढ़ायँगे । और वर्तमान के साहस- पूर्ण कार्यक्रमको | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ७५ ^^ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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