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________________ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) से इन्होंने कुँवरनी केशवजीके नामसे धंधा किया। सं० १९७६ में ओधवनी, सी. लद्धाके भागमें धंधा किया। सं० १९७९ हीरनी लालनीकी भागीदारीमें धंधा किया। सं० १९८३ तक इसमें शामिल रहे। फिर तबीअत ठीक न रहनेसे अलग हो गये। जब तबीअत अच्छी हुई तो महम्मद सुलेमानकी पेढीमें मागीदार हुए। अभी तक यह भागीदारी चालू है। सं० १९५२ में इन्होंने केशवजी और गोविंदनी शामनी के नामसे पालीतानेमें रसोडा शुरू किया। उसका बार्षिक खर्च करीब तेरह सौ चौदह सौ है । वह रसोड़ा आन कत चालू है । कच्छ कोठारामें सं० १९६४ में जैन पाठशालाका एक मकान बनवाया । उसमें चार हनार रुपये खर्चे । उसके बाद शिक्षक रख कर पाठशालाकी पढ़ाई शुरू की। आज तक वह शाला चालू है। उसका वार्षिक खर्चा पाँच सौ रुपये हैं। श्रीयुत शिवजी देवसीने मांडवीमें 'कच्छी जैन बालाश्रम' नामकी एक संस्था कायम की थी। उसमें उस समय कोई स्थायी फंड नहीं था । आठ महीने स्टीमरोंके चालु रहनेसे बंबईसे लोग आते जाते रहते थे इसलिए उनके दानसे खर्चा चलता रहता था; परन्तु चौमासेमें स्टीमर बंद हो जाते थे इसलिए भामदनी मी बंद हो जाती थी । चार महीनेके लिए शिवजीमाई अलहदा अलहदा सेठियोंके यहाँ विद्यार्थियोंको रखते थे। इसमें चार पाँच हजारका खर्चा होता था। एक साल इसी तरहसे इन्होंने भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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