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________________ श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन मूलजी ( सर विसनजी त्रिकमनी) की कंपनी में शामिल हुए। और केशवनीमाईने स्वतंत्र परचरण रुईका धंधा किया । केशवजीने इसमें अच्छी कमाई की। केशवजीके प्रथम लग्न चांपूबाईके साथ हुए। उनसे लखमसी और वीरवाई हुए। दूसरे लग्न श्रीमती प्रेमाबाईके साथ हुए । इनसे धनजी और कुंवरजी नामके दो लड़के हुए। प्रेमाबाई सं० १९५४ में और सं० १९६० में केशवजीमाईका देहांत हो गया । लखमसीमाईके पहले लग्न सं० १९४५ सं० १९५५ में हुए थे । घननीमाईके लग्न सं० १९५५ में हुए थे। कुँवरजीभाईके प्रथम लग्न सं० १९५५ में श्रीमती गंगाबाई के साथ हुए । दूसरे लग्न सं० १९६९ में श्रीमती नेनबाईके साथ हुए। तीसरे लग्न सं० १९७० में मेघवाईके साथ हुए और चौथे सं० १९७८ में देवकांबाईके साथ हुए थे। यह बाई अभी मौजूद है। . ___मेघवाईसे एक लड़की नवलबाई हुई और देवकांबाईसे विमला नामकी एक कन्या है। सं० १९१६ में इन्होंने कुंवरजी कानजी नामकी कंपनीमें काम शुरू किया । सं० १९६० में इनके पिताकी मृत्युके बाद धननी केशवजीके नामसे रूईका धंधा शुरू किया। सं० १९६९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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