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________________ ..... .. जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) हुए । सं० १९६१ में बंबई आये और वेजी शिवजी के यहाँ ६००) रु. सालानामें नौकर हुए। दूसरे साल हजार रुपये सालाना हुए । तीसरे साल कामसे खुश होकर सेठने ढाई हजार रुपये इनाममें दिये । इसी तरह प्रति वर्ष छ: बरस तक कमी पाँच हजार कभी सात हजार ऐसे इनाम देते रहे । सं० १९०० में इन्हें दस हनार रुपये इनाम मिले । सं० १९७१ में इन्हें दुकानमें भागीदारी मिली । ये अब तक उसके भागीदार हैं। सं० १९१३ में गाँव वायट ( कच्छ ) के सा नागसी नेणसीकी लड़की मूरबाईके साथ लम हुए। उनके दो लड़कियाँ हुई । वें मर गई । बाईका भी देहांत हो गया। ___सं० १९७२ में वराडिया ( कच्छ ) के सा. वीरनी मणसीकी लड़की सोनबाईके साथ लग्न हुए । उनके एक लड़का हुआ। थोबण नाम रक्खा । लडका अब बारह बरसका है। तीन बरसके बाद बाईका देहान्त हुआ। ____सं० १९७५ में प्रजाऊ (कच्छके) जेठा मेरजीकी लड़की वेलबाई के साथ लग्न हुए। वे अब तक विद्यमान हैं। इन्होंने वराडिया ( कच्छ ) में आठ हजार रुपये खर्च कर एक मकान बनाया। घाटकूपरमें एक चॉल साठ हजार रुपये में बनवाई । उसका नाम लद्धामाई मणसीकी चाल है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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