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________________ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) सं० १९६५ से अबतक बीस बरसमें जुदा जुदा चंदों में करीब पौन लाख रुपये दिये हैं । e माईके लड़के रतनसी माणेककी पुत्री झपकु खर्च किये थे । अपने सं० १९७४ में अपने छोटे को गोद लिया है । इसके लग्न कानजी बाईके साथ किये । उसमें अस्सी हजार भाइयोंके लग्नों में भी इन्होंने पचास हजार रुपये खर्चे । I नं० १९७२ में इनके पिताका और सं० १९८३में इनकी माताका देहान्त हुआ । इनकी माताने धर्मादेमें दस हजार रुपये खर्च किये I इनके पुत्र रतनसीके लखमीचंद नामका लड़का है । इनके भाई गंगाजरके चांपसीपुत्र और मानबाई नामकी पुत्री है । वसनजीके हीरबाई नामकी लड़की है। चौथे माईके कोई संतान नहीं है । माई देवी लालजी नामका पुत्र है । कुँवरजी सेठकी माता मेघवाई बहुतही सरल और गृहकार्य कुशल थीं। इससे इनके माइयों में हमेशा प्रेम रहा । कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ । कुँवरजी माईका स्वभाव सादा, सत्यप्रिय और निखारस है । यही इनकी सफलता की कुंजी है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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