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________________ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ श्वेतांबर मूर्तिपूजक जेन १ विद्वान उनसे नियमित मासिक सहायता पाते थे। उनके दर्वाजे पर गया हुआ कभी निराश नहीं लौटा। वे खोजा रीडिंग रूमके जीवनसभ्य थे । मांगरोल जैनसमाजके प्रतिनिधि थे। सेठ नरसी नाथा चेरिटी फंडके, कुमठा मंदिरके, सिद्धक्षेत्रमें स्थापित वीरबाई पाठशालाके और अपने नामके जैनबोर्डिंगके ट्रस्टी थे। कच्छी दसा ओसवाल जैन महाजनके प्रमुख, पांजरापोल बंबईके ट्रस्टी व उपप्रमुख थे। कॉटन एक्सचेंज और कॉटनटेड एसोसिएशनके वे समासद थे। कई मिलोंके डिरेक्टर भी थे। शिक्षणका प्रचार करने के लिए उन्होंने खेतबाई जैनपाठशाला और रतनबाई जैनकन्याशालाकी स्थापना की थी। वे अनेक विद्यार्थियोंको मासिक स्कॉलर्शि भी दिया करते थे। एक बार वे इंग्लैंड मी हो आये थे। वे उत्साही, कार्य: दक्ष, निरभिमानी और सखी पुरुष थे। जैनसमाजको उनका अभिमान था। दैव दुर्विपाकसे उनकी पिछली जिंदगीमें उन्हें संकटका सामना करना पड़ा । लक्ष्मी समी विलीन होगई। तो भी लोगोंने कभी उन्हें शोक करते नहीं देखा। वे कहा करते थे, लक्ष्मी आती है और जाती है । इसके लिए हर्ष शोक कैसा? ता. १२-१-१९२२ की रातको यह महान नर इस मानव देहको छोड़कर चला गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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