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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन ३९ जाति में उनकी बहुत प्रशंसा हुई थी । बंबई में जब कॉलेरा ( मरकी ) का रोग हुआ था, तब उन्होंने लोगों को राहत देने के लिए एछ अस्पताल मांडवी बंदर पर खोला था । गवर्नमेंटने इसलिए उनकी बहुत प्रशंसा की थी । सं० १९९६ के भयंकर दुष्कालमें उन्होंने दुखी लोगोंको अच्छी मदद की थी । अपने गाँव सुथरी ( कच्छ ) में अनाजकी दुकान खोलकर अनेक गरीब लोगों को आश्रय दिया था । इस तरह की उनकी परोपकार वृत्तिसे प्रसन्न होकर सरकारने पहले उनको जे. पी. की और पीछेसे राव साहबकी पदवी दी थी । ये सरकारी सम्मान कच्छी जैन समाज में सबसे पहले बसनजी सेठहीको मिले थे । इस तरहका सरकारी मान, जाति में पूर्ण प्रतिष्ठा और लक्ष्मी की पूर्ण कृग होते हुए भी वसनजी सेठ निरभिमानी थे । उन्होंने दान बहुत किया है, परन्तु सब प्रकट नहीं हुआ । वे कभी यह नहीं चाहते थे कि वे जो दान दें वह प्रसिद्धि में आवे । मगर प्रायः जैन समाजका और खास करके कच्छी दसा ओसवाल जैनसमाजका एक मी धार्मिक या सामाजिक काम उनकी जिंदगी में ऐसा न हुआ होगा जिसमें उनकी रकम न होगी । उनके दिये हुए दानमेंसे जो रकमें प्रसिद्धि में आई यहाँ दी जाती हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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