SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर चरित-भूमिका murmammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ९-अतिवृष्टि-आवश्यकतासे ज्यादा बारिश-नहीं होती है। १०-अनादृष्टि-बारिशका अभाव नहीं होता है। ११-दुर्भिक्ष नहीं पड़ता है। १२-उनके शासनका या किसी दूसरेके शासनका लोगोंको भय नहीं रहता है। १३-उनके वचन ऐसे होते हैं कि, जिन्हें देवता, मनुष्य और तिर्यंच सब अपनी भाषामें समझ लेते हैं। १-वचन ३५ गुणवाले होते हैं। (१) सब जगह समझे जा सकते हैं । (२) एक योजनतक वे सुनाई देते हैं । (३) प्रौढ ( ४ ) मेघके समान गंभीर (५) सुस्पष्ट शब्दोंमें (६) सन्तोषकारक (७) हर एक सुननेवाला समझता है कि वे वचन मुझीको कहे जाते हैं (८) गूढ आशयवाले (९) पूर्वापर विरोधरहित (१०) महापुरुषोंके योग्य (११) संदेह-विहीन (१२) दूषणरहित अर्थवाले (१३) कठिन विषयको सरलतासे समझानेवाले (१४) जहाँ जैसे शोभे वहाँ वैसे बोले जा सकें (१५) षड् द्रव्य और नौ तत्त्वोंको पुष्ट करनेवाले (१६) हेतु पूर्ण (१७) पद रचना सहित (१८) छः द्रव्य और नौ तत्त्वोंकी पटुता सहित (१९) मधुर (२०) दूसरेका मर्म समझमें न आवे ऐसी चतुराईवाले (२१) धर्म, अर्थ प्रतिबद्ध ( २२) दीपकके समान प्रकाश-अर्थ सहित (२३) परनिन्दा और स्वप्रशंसा रहित (२४) कर्ता, कर्म, क्रिया, काल और विभक्ति सहित (२५) आश्चर्यकारी (२६) उनको सुननेवाला समझे कि वक्ता सर्व गुण सम्पन्न है । (२७) धैर्य्यवाले ( २८) विलम्ब रहित (२९) भ्रांति रहित (३०) प्रत्येक अपनी भाषामें समझ सकें ऐसे (३१) शिष्ट बुद्धि उत्पन्न करनेवाले (३२) पदोंका अर्थ अनेक तरहसे विशेष रूपसे बोले जायँ ऐसे ( ३३) साहसपूर्ण (३४) पुनरुक्ति-दोष-रहित और (३५) सुननेवालेको दुःख न हो । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy