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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन हीरजी खेतसिंह इनका जन्म सं० १९४४ के आसोन सुदि १५ के दिन हुआ था। इनके माग्यके कारण सोजपाल खेतसिंहकी कंपनीको बहुत नफा हुआ। इन्होंने प्रिविअस तक अभ्यास किया था। अपने पिताकी तरह बड़े उदार थे। अपने जेब खर्चमेसे अनेक विद्यार्थियों को मदद किया करते थे। इन्होंने सुथरीकी पाठशालाको-जहाँ इन्होंने अपनी शिक्षा प्रारंभ की थी-कई बार महायता भेजी थी। अनेक विद्यार्थियोंको उच्च शिक्षा लेने जानेके लिए खर्चेकी व्यवस्था कर दी थी। इनके दो लग्न हुए थे । प्रथम पत्नीसे एक कन्या और दूसरी पत्नीसे एक पुत्र हुआ था । कन्या चंदनबाईका देहांत हो गया है । पुत्र हीराचंद अभी मौजूद है।। ये व्यापारमें लगे उसके थोड़े ही दिन बाद इन्होंने रूईका बहुत बड़ा सट्टा किया । अत्यंत परिश्रम करके पट्टेको पार उतारा और तभी उन्होंने समझा कि खुद परिश्रम करके धन कमाने कितनी तकलीफ होती है अच्छे अच्छे विद्वान, धनाढ्य और काठियावाड़के राजा महाराजाओंसे इनका स्नेह था।पालनपुरके नवाब तालेमहम्मदखाँ, बडौदेके स्व० कुमार जयसिंहराव, पोरबंदरके राणा नटवरसिंहजी और लींबडीके कुमार दिग्विनयजीके साथ इनका कुटुंबकासा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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