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________________ mmmmmm जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) कॉलेजमें दाखिल करा दिया। इन्होंने सन् १९०८ में एल. एम. एण्ड एस की परीक्षा पास की। कच्छी दसा ओसवाल जातिने जैसे लखमसीमाईको सबसे पहले वकील होनेके उपलक्षमें मानपत्र दिया वैसे ही पुन्सीभाईको सबसे पहले डॉक्टर होनेके उप रक्षा मानपत्र दिया । डा. पुन्सीमाईने मांडवी बंदर पर ही सन् १९०८ में अपनी प्रेक्टिस शुरू की । इनका मिलनसार स्वभाव, इनकी रोगीको आश्वासन देनेकी पद्धति और पूरी जाँच करके रोगीको दवा देनेकी आदतने झकी अच्छी प्रसिद्धि की। मांडवी मुहल्ले में बसनेवाले क्या हिन्दु क्या मुसलमाम सभी लोग इन्हें स्नेह और मादाकी हिसे देखने लगे। ___ और इस स्नेह और आदरहीका यह परिणाम हुआ कि, सन् १९१३ में ये मांडवी मुहल्लेसे, म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन बंईके अंदर, प्रतिनिधि बनाकर भेजे गये । ये अवतक प्रत्येक बुमाकमें चुने जाते हैं। इन्होंने भी यथासाभ्य कॉर्पोरेशन द्वाश मी प्रनाकी सेवा की है। इनकी कार्य कुशलताके कारण ही कॉर्पोरेशनने भी इन्हें स्टैंडिंग कमेटिके मेम्बर चुने । और आज तक उसके मेम्बर रहकर प्रजाकी उपयोगी सेवा कर रहे हैं। __इनके डॉक्टरी ज्ञानकी उत्तमताके कारण सन् १९१७ में इसको फ. सी. पी. एस. ( F C. P S.-फेलो ऑफ दि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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