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________________ श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन लगे। और जब संवत १९५६ में इनके पिता धंधेसे हाथ खींचकर धर्म ध्यानमें लगे तब इन्होंने अपने पिताका सारा मार उठाया । और बड़ी ही योग्यताके साथ ये अपना कामकान करने लगे । इनकी दीर्घ दृष्टि, समय सूचकता और काम करनेकी होशियारीसे इन्होंने अच्छी ख्याति प्राप्त कर ली। जिस तरह ये अपने धंधेमें होशियारीसे काम करते हैं उसी तरह सार्वजनिक कामों और खास करके जैन समाजके कामोंमें भी बहुत दिलचस्पी लेते हैं। इनकी प्रसिद्धि और जनसेवासे प्रसन्न होकर गवर्नमेंटने इनको सन् १९२७ में 'रावसाहब' की पदवी दी। समाजने भी इनकी सेवाओंसे उपकृत होकर मानपत्रों द्वारा इनका सम्मान किया. १-कच्छी वीसा ओसवाल देहरावासी महाजन बंबईने दो मानपत्र दिये. (१) रावसाहबकी पदवी मिली तब और (२) मंबईमें स्पेशल कॉन्फरेसकी स्वागत समितिके ये प्रमुख बने तब • २-लायजा ( कच्छ ) के कच्छी ओसवाल संघने इनको मानपत्र दिया। १-बंबईक कच्छी दसा ओसवाल महाननने एक मानपत्र भेट किया। ४-ग्रेनडीलर्स एसोसिएशन बंबईकी तरफसे एक मानपत्र दिया गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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