SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन मोदीकी एक अलग दुकान खोल ली । उसमें अच्छी कमाई करनेके बाद इन्होंने सराफी-लेनदेनका-धंधा प्रारंभ किया। सं० १९२६ में इनके छोटे भाई तेजुकाया भी बंबई आ गये थे। इसलिए थोड़े बरसोंके बाद इन्होंने अपने छोटे भाई ‘तेजुकाया के नामसे कंट्राक्ट का धंधा शुरू किया और इसमें खूब सफलता पाई । सं० १९५६ में इन्होंने अपने पुत्र स्वनीभाई, पालनभाई और मेघनीभाईको अपना काम सौंपा और आप धर्मध्यानमें जीवन बिताने लगे। लग्नोंमें-इन्होंने अपने भतीनों और पुत्र पुत्रियोंके ब्याह बड़ी धूमधामके साथ किये और कहा जाता है कि उनमें बहुतसा खर्च किया था। जायदाद-अपने गाँव लायनामें एक लाख रुपये खर्च कर तीनों भाइयोंके लिए मव्य बँगले बनवाये । यहाँ तीनों माइयोंकी करीब दस लाखकी जायदाद मकानात वगैरा हैं। दान-इन्होंने दानपुण्य में भी लाखों खर्चे । बड़ी बड़ी कुछ रकमें यहाँ दी जाती हैं। ८.०००) अपने गांव लायनामें एक हॉस्पिटल खोला उसमें. ३००००) हॉस्पिटलका मकान बनवाया. ५००००) चालु खर्च के लिए । अस्पताल में एक एम. बी. बी. एस. डॉक्टर है। ६३००) लालबाग (वंबई) के अनमंदिरमें । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy