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________________ ५७२ पे० ला० अशुद्ध शुद्ध ४० ७-तीसरे दिनके अंतमें। चौथे दिन । ४७ १७-पाँच तो इनके । चार तो इनके। ५१ १६-क्षणमें प्रमदाका । क्षणमें प्रमादको। ५२ ४-पादोपगमन । पादपोपगमन। ५३ ११-आपचमें। आपसमें । ५७ १६-वज्रषभ । वज्रषभ । ६६ ३-वार्षिक वार्द्धिक । '६६ ९-४६ युग्म । ४९ युग्म । ७१ ४-(बहेडाके जलसे) जैसे दुग्ध चावलकी भूसीके पानीसे जैसे फट जाता है। दूध बिगड़ जाता है। ७७ २१-प्रथम पारणा। पारणा। .८१ ७-क्षीणमो। क्षीणमोह। ८१ १४-विषयज्ञान । विषयक ज्ञान । ८३ १३-आताप। आतप । ८६ ६-चतुर्दश पूर्व और द्वादशांगी पर। गणधरोंपर । ८६ २३-प्रभुके चरणों में । प्रभुकी पाद पीठपर। ८७ ४-प्रभुका अधिष्ठायक । प्रभुके तीर्थका अधिष्ठायक । ८७ १५-समवसरण आया हुआ था। समवसरण हुआ था । .८८ ३-तपश्चाचरण । तपश्चरण । .८८ ३-४-इस समय उसके घाति परंतु उसके मान । कर्मनाश हो गये हैं परंतु मान। ८८ १५-( लाल, पीले) ( लाल ) । ९० १३-( इस लाइनमें सभी जगह ६ के अंकको ९ समझना) ९० १७-२४-पादोपगमन । पादपोपगमन। १०० २०-पुष्पको। | पुण्यको। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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