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________________ जैनरत्न पूर्वाईका शुद्धिपत्र। + Ke + पे० ला० अशुद्ध १० १०-अरिष्टनेमिकी माता शिवा- | महावीर स्वामीकी माता त्रिशला देवीने हस्ति देखा देवीने सिंह देखा । १८ ९-पाषाणके दो गोलोंको पृथ्वीमें घूघरे बजाती है । पछाड़ती है। २० ४-अठासी। २८ अहाईस। २३ ११-एक हजार आठ आठ हजार । २३ १२-कुल मिलाकर इन घडोंकी कुल मिलाकर ढाई सौ अभिषेसंख्या । __ कोंमें इन घड़ोंकी संख्या । २५ ८-चार । पाँच। २६ ९-तीर्थकर नामकर्मका उदय तीर्थकी स्थापना करते हैं। होता है। ३१ २-मणिका के। मणियोंके। ३१ ८-(धूप) ( केशर कंकूक) ३१ १५-घी तथा शहद डालते हैं। घी डालते हैं। ३२ ८-रुधिर दुग्धके समान। धिर और मांस दुग्धके समान। ३२ १७-दो सौ कोस तक। सौ कोस तक। ३४ ५-बारह जोड़ी (चौबीस) चार जोड़ी ( आठ) ३५ ९-या मूलातिशय कहलाते हैं। कहलाते हैं। ३६ ५-सवासौ योजनतक | पचीस योजन (सौ कोस) तक! ३६ सत्रहवीं लाइनके आगे “ये चार मूलातिशय कहलाते हैं।" यह वाक्य और पदिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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