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जैन-रत्न
यह सप्तभंगी ( सात वचनप्रयोग ) दो भागोंमें विभक्त की जाती है । एकको कहते हैं 'सकलादेश' और दूसरेको · विकलादेश' । " अमुक अपेक्षासे घट अनित्य ही है।” इस वाक्यसे अनित्य धर्मके साथ रहते हुए घटके दूसरे धर्मोको बोधन करानेका कार्य 'सकलादेश' करता है । ' सकल' यानी तमाम धर्मोको 'आदेश' यानी कहनेवाला । यह 'प्रमाणवाक्य ' भी कहा जाता है । क्योंकि यह प्रमाण वस्तुके तमाम धर्मोको विषय करनेवाला माना जाता है । " अमुक अपेक्षासे घट अनित्य ही है।" इस वाक्यसे घटके केवल 'अनित्य ' धर्मको बतानेका कार्य — विकलादेश' का है । ' विकल' यानी अपूर्ण । अर्थात् अमुक वस्तुधर्मको · आदेश' यानी कहनेवाला — विकलादेश' है । विकलादेश ' नय'-वाक्य माना गया है । 'नय' प्रमाणका अंश है । प्रमाण सम्पूर्ण वस्तुको ग्रहण करता है, और नय उसके अंशको ।
इस बातको तो हरेक समझता है कि, शब्द या वाक्यका कार्य अर्थबोध कराना होता है ! वस्तु के सम्पूर्ण ज्ञानको प्रमाण' कहते हैं और उस ज्ञानको प्रकाशित करनेवाला वाक्य 'प्रमाणवाक्य' ___ " स्यादस्त्येव स्याद्नास्त्येव, इति क्रमतो विधिनिषेधकल्पनया तृतीयः।"
" स्याअवक्तव्यमेव, इति युगपद्विधिनिषेधकल्पनया चतुर्थः ।"
" स्यादस्त्येव स्यादवक्तव्यमेव, इति विधिकल्पनया युगपद् विधिनिषेधकल्पनया व पञ्चमः ।"
" स्याद् नास्त्येव स्यादवक्तव्यमेव, इति निषेधकल्पनया युगपत् विधिनिषेधकल्पनया च षष्ठः ।"
" स्यादस्त्येव, स्याद् नास्त्येव, स्यादवक्तव्यमेव, इति क्रमतो विधिनिषेधकल्पनया युगपत् विधिनिषेधकल्पनया च सप्तमः।"
-प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकारः, वादि देवसूरि ।
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