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________________ जैन-दर्शन ५५३ ~~~~~~~~ ~~~~~~~mmmmmmmmmmmmmmm. तीसराशब्द प्रयोग-किसीने पूछा कि-" घट क्या अनित्य और नित्य दोनों धर्मवाला है ?" उसके उत्तरमें कहना कि-"हाँ, घट अमुक अपेक्षासे, अवश्यमेव नित्य और अनित्य है।" यह तीसरा वचन-प्रकार है । इस वाक्यसे मुख्यतया अनित्य धर्मका विधान और उसका निषेध, क्रमशः किया जाता है। ___ चतुर्थ शब्दप्रयोग—" घट किसी अपेक्षासे अवक्तव्य है।" घट अनित्य और नित्य दोनों तरहसे क्रमशः बताया जा सकता है, जैसा कि तीसरे शब्दप्रयोगमें कहा गया है। मगर यदि विना क्रमयुगपत् ( एक ही साथ ) घटको अनित्य और नित्य बताना हो तो, उसके लिए जैनशास्त्रकारोंने,-'अनित्य' 'नित्य' या दूसरा कोई शब्द उपयोगमें नहीं आ सकता है इसलिए,-'अवक्तव्य' शब्दका व्यवहार किया है। यह भी ठीक है। घट जैसे अनित्य रूपसे अनुभवमें आता है उसी तरह नित्य रूपसे भी अनुभवमें आता है। इससे घट जैसे केवल अनित्य रूपमें नहीं ठहरता वैसे ही केवल नित्यरूपमें भी घटित नहीं होता है । बल्के वह नित्यानित्यरूप विलक्षणजातिवाला ठहरता है। ऐसी हालतमें घटको यदि यथार्थ रूपमें नित्य और अनित्य दोनों तरहसे-क्रमशः नहीं किन्तु एक ही साथ-बताना हो तो शास्त्रकार कहते हैं कि इस तरह बतानेके लिए कोई शब्द नहीं है। अत: घट अवक्तव्य है। .. - -..--- ___ १ शब्द एक भी ऐसा नहीं है कि जो नित्य और अनित्य दोनों धमोंको एक ही साथमें, मुख्यतया प्रतिपादन कर सके । इस प्रकारसे प्रतिपादन करनेकी शब्दोंमें शक्ति नहीं है । 'नित्यानित्य' यह समास-वाक्य भी कमहीसे नित्य और अनित्य धर्मोंका प्रतिपादन करता है । एक साथ नहीं । " सकृदुच्चरितं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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