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________________ जैन - रत्न कि, रात्रिमें जीव- समूह भोजन पर भी अवश्यमेव बैठते होंगे । अतः रातमें खाते समय, उन जीवोंमेंसे जो भोजनपर बैठते हैं- कई जीवोंको, लोग खाते हैं; और इस तरह उनकी हत्याका पाप अपने सिर लेते हैं । कितने ही जहरी जीव रात्रिभोजन के साथ पेटमें चले जाते हैं, और अनेक प्रकारके रोग उपजाते हैं । कई ऐसे जहरी जन्तु भी होते हैं, जिनका असर पेटमें जाते ही नहीं होता, दीर्घ कालके बाद होता है । जैसे जलोदर, करोलिया से कोट और कीडी से बुद्धिका नाश होता है । यदि कोई तिनका खानेमें आ जाता है, तो वह गलेमें अटक कर कष्ट पहुँचाता है; मक्खी आ जाने से वमन हो जाती है और अगर कोई जहरी जन्तु खानेमें आ जाता है तो मनुष्य मर जाता हैं; अकालही में कालका भोजन बन जाता है । ५२८ शामको ( सूर्यास्त के पहिले ) किया हुआ भोजन, बहुतसा जठरानिकी ज्वालापर चढ़ जाता है- पच जाता है, इसलिए निद्रापर उसका असर नहीं होता है । मगर इससे विपरीत करनेसे - रातको खाकर थोड़ी ही देर में सो जानेसे, चलना फिरना नहीं होता इसलिए, पेटमें, तत्कालका भरा हुआ अन्न, कई बार गंभीर रोग उत्पन्न कर देता है | डॉक्टरी नियम है कि, भोजन करनेके बाद थोड़ा थोड़ा जल पीना चाहिए । यह नियम रातमें भोजन करने से नहीं पाला जा सकता है; क्योंकि इसके लिए अवकाश ही नहीं मिलता है । इसका परिणाम 'अजीर्ण' होता है। अजीर्ण सत्र रोगों का घर है, यह बात हरेक जानता है । प्राचीन लोग भी पुकार पुकार कर कहते हैं, " अजीर्णप्रभवा रोगाः । "" - इस प्रकार, हिंसा की बातको छोड़ कर आरोग्यका विचार करने पर भी सिद्ध होता है कि, रातमें भोजन करना अनुचित है | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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