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________________ ४९८ जैन-रत्न mammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmravamm सामायिक व्रत-राग-द्वेषरहित शान्तिके साथ दो घड़ी यानी ४ ८ मिनिट तक आसन पर बैठनेका नाम 'सामायिक ' है। इस समय, आत्मतत्त्वकी विचारणा, वैराग्यमय शास्त्रोंका परिशीलन अथवा परमामाका ध्यान करना चाहिए । देशावकाशिक व्रत-इसका अभिप्राय है-छठे व्रतमें ग्रहण किये हुए दिखतके दीर्घकालिक नियमको एक दिन या अमुक समयतकके लिए परिमित करना; इसी तरह दूसरे व्रतोंमें जो छूट हो उसको भी संक्षेप करना।। पोषधव्रत-यह, धर्मका पोषक होता है इसलिए · पोषध' कहलाता है । इस व्रतका अभिप्राय है-उपवासादि तप करके चार या आठ प्रहर तक साधुकी तरह धर्मकार्यमें आरूढ रहना । इस पोषधमें अंगकी, तैल-मर्दन आदि द्वारा, शुश्रूषाका त्याग, पापव्यापारका त्याग तथा ब्रह्मचर्यपूर्वक धर्मक्रिया करनेका और शुभ ध्यानका अथवा शास्त्रमननका स्वीकार किया जाता है। अतिथिसंविभाग–अपनी आत्मोन्नति करने के लिए गृहस्थाश्रमका त्याग करनेवाले मुमुक्षु ' अतिथि' कहलाते हैं। उन अतिथियोंको-मुनि महात्माओंको अन्न, वस्त्र आदि चीजोंका, जो उनके मार्गमें बाधा न डालें मगर उनके संयमपालनमें उपकारी हों, दान देना और रहने के लिए स्थान देना इस व्रतका अभिप्राय है । साधु संतोंके अतिरिक्त उत्तम गुण-पात्र गृहस्थोंकी प्रतिपत्ति करना भी इस व्रतमें सम्मिलित होता है। इन बारह व्रतों से प्रारंभके पाँच व्रत · अणुव्रत ' कहलाते हैं । इसका अभिप्राय यह है कि वे साधुके महावतोंके सामने 'अणु' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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