SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६२ जैन-रत्न संसारमें जीव अनन्त हैं। यहाँ प्रश्न हो सकता है कि,-संसारवर्ती जीवराशिमेंसे जीव, कर्मोंको क्षय करके मुक्तिमें गये हैं, जाते हैं और जावेंगे । ऐसे जीव हमेशा संसारमेंसे घटते जाते हैं, इससे एक दिन संसार क्या जीवविहीन नहीं हो जायगा ? इस बातका सूक्ष्स दृष्टिसे विचार करनेके पहिले हम यह कह देना चाहते हैं कि, इस बातको न कोई दर्शनशास्त्र ही मानता है और न हृदय तथा अनुभव ही स्वीकार करता है कि, किसी दिन संसार जीवोंसे खाली हो जायगा । साथ ही यह भी नहीं माना जा सकता है कि, मुक्तिमेंसे जीव वापिस आते हैं। क्योंकि मोक्ष, जीवको उसी समय मिलता है जब कि वह सब काँका नाश कर देता है; इस बातको प्रायः सभी मानते हैं और संसार-भ्रमणके कारण कर्म जब निर्लेप, परब्रह्मस्वरूप, मुक्त, जीवोंको नहीं होते हैं, तब यह कैसे माना जा सकता है कि जीव मोक्षसे वापिस संसारमें आते हैं। यदि यह मान लिया जाय कि मोक्षमेंसे जीव वापिस आते हैं, तो मोक्षकी महत्ता ही उड़ जाती है। जिस स्थानसे पतनकी संभावना है वह स्थान मोक्ष कैसे माना जा सकता है ? उक्त बातोंको अर्थात मोक्षमेंसे जीव वापिस नहीं आते हैं और संसार कभी जीवशन्य नहीं होता है, इन दोनों सिद्धान्तोंको ध्यानमें रखकर उक्त शंकाका समाधान करना आवश्यक है। ___ परमार्थ दृष्टिद्वारा देखनेसे विदित होता है कि, जितने जीव मोक्षमें जाते हैं, उतने संसारमेंसे अवश्य ही कम होते हैं। मगर जीवराशि अनंत है, इसलिए संसार जीवोंसे खाली नहीं हो सकता है। संसारमेंसे सदा जीवोंके निकलते रहने, और जीवोंके नहीं बढ़ने पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy