________________
जैनदर्शने
eGoon पहले चौबीस तीर्थकरोंके चरित्रदिये जाचुके हैं। उन तीर्थकरोंने धर्मका सिद्धान्तोंका उपदेश दिया है वे सिद्धान्त 'जैनदर्शन ' या 'जैनधर्म के नामसे प्रसिद्ध है । हही 'जैनदर्शन । यहाँ संक्षेपमें समझा या जाता है। अवतरण । ___ जब हम सोचते हैं कि, संसार क्या चीज है ! तो यह हमें जड़ और चेतन ऐसे दो पदार्थोंका-तत्त्वोंका विस्तार मालूम होता है । इन दोके सिवा संसारमें कोई तीसरा तत्त्व नहीं है । सारे ब्रह्माण्डकी चीजें इन्हीं दो तत्त्वोंमें समा जाती हैं।
जिसमें, चेतना नहीं है, लागणी नहीं है वह जड़ है। जो इससे विपरीत है, चैतन्य-ज्ञानमय है वह आत्मा है-चेतन है । आत्मा, जीव, चेतन आदि सबका अर्थ एक है। इन्हीं दो तत्त्वोकोजड और चेतनको-विशदरूपसे समझानेके लिए जैनशास्त्रकारोंने इनको कई भागोंमें विभक्त कर डाला है । मुख्य भाग नौ किये गये हैं। इन नौमें भी, अच्छी तरहसे समझानेके लिए, प्रत्येकको कई भागों में विभक्त किया है; और उनको अच्छी तरह खोल खोलकर समझाया है । मगर जैनसिद्धान्तविकासके मूलाधार नौ ही तत्त्व हैं।
१-यह निबंध न्यायतीर्थ और न्यायविशारद मुनिश्री न्यायविजयजी महाराजका लिखा हुआ है ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com