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तीर्थंकर चरित-भूमिका
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स्वप्नोंका फल सुनाते हैं । बस इस कल्याणक इतना ही होता है।
२] जन्म-कल्याणक-भगवानका जब जन्म होता है तब यह उत्सव किया जाता है । जब भगवानका प्रसव होता है तब दिककुमारियाँ आती हैं।
सबसे पहिले अधोलोककी आठ दिशा-कुमारियाँ आती है । इनके नाम ये हैं,-भोगंकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, तोयधारा, विचित्रा, पुष्पमाला और अनिंदिता। ये आकर भगवानको और उनकी माताको नमस्कार करती हैं। फिर भगवानकी मातासे कहती हैं कि,-"हम अधोलोक की दिक्कुमारियाँ हैं । तुमने तीर्थंकर भगवानको जन्म दिया है । उन्हींका जन्मोत्सव करने यहाँ आई हैं । तुम किसी तरहका भय न करना । उसके बाद वे पूर्व दिशाकी ओर मुखवाला एक सूतिका गृह बनाती है। उसमें एक हजार स्तंभ होते हैं। फिर 'संवत' नामकी पवन चलाती हैं । उससे मुनिका गृहके एक एक योजन तकका भाग काँटों और कंकरों रहित हो जाता है । इतना होनेबाद ये गीत गाती हुई भगवानके पास बैठती हैं। - इनके बाद मेरु पर्वतपर रहनेवाली उर्द्धलोक वासिनी, मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, तोयधारा, 'विचित्रा, वारिषेणा और वलाहिका, नामक आठ दिक्कुमारियाँ आती है। वे भगवान और उनकी माताको नमस्कार कर विक्रियासे आकाशमें बादल कर, सुगंधित जलकी दृष्टि
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