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________________ जैन-रत्न आपने चौदह स्वप्ने ही देखे हैं इससे आपका पुत्र चौदह राजलोकका स्वामी होगा।" इस तरह स्वप्नोंका फल सुनाकर इन्द्र अपने अपने स्थान'पर चले जाते हैं। पंच कल्याणक तीर्थकरोंके जन्मादिके समय इन्द्रादि देव मिलकर जो उत्सव करते हैं उन उत्सवोंको कल्याणक कहते हैं। इन उत्सवोंको देवता अपना और प्राणीमात्रका कल्याण करनेवाले समझते हैं इसीलिए इनका नाम कल्याणक रक्खा गया है । ये एक तीर्थंकरके जीवनमें पांच बार किये जाते हैं । इस लिये इनका नाम पंचकल्याणक रक्खा गया है । इन पाँचोंके नाम हैं [१] गर्भ-कल्याणक [२] जन्म-कल्याणक [३] दीक्षा-कल्याणक [ ४ ] केवलज्ञान-कल्याणक और [५] निर्वाण-कल्याणक । इन पाँचो कल्याणकोंके समय इन्द्रादि देव कैसी तैयारियाँ करते हैं उनका स्वरूप यहाँ लिखा जाता है। [१] गर्भ-कल्याणक-भगवानका जीव जब माताके गर्भमें आता है तब इन्द्रोंके आसन कंपित होते हैं । इन्द्र सिंहासनसे उतरकर भगवानकी स्तुति करते हैं और फिर जिस स्थानपर भगवान उत्पन्न होनेवाले होते हैं वहाँ वे जाकर भगवानकी माताको जो चौदह स्वप्न आते है उन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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