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________________ ४३८ जैन-रत्न दीवाली पर्व उस समय राजाओंने देखा कि, अब ज्ञानदीपक-भावदीपक बुझ गया है इसलिए उन्होंने द्रव्यदीपक जलाये । दीपकप्रकाशने बाह्य जगतको प्रकाशित कर दिया । उस दिनकी स्मृतिमें आज भी हिन्दुस्थानमें कार्तिक वदि अमावस्याके दिन दीपक जलाते हैं और उस दिनको दीवाली पर्वके नामसे पहचानते हैं। __ इन्द्रादि देवोंने 'निर्वाणकल्याणक' मनाया और तब सभी अपने अपने स्थानोंको चले गये। ___ महावीर स्वामी विक्रम सं० ५४३ ( ईस्वी सन ६००) पूर्व चैत्र सुदि १३ को जन्मे । ३० बरस ७ महिने और १३ दिए गहस्थ रहकर विक्रम सं० ५१३ (ई. स. ५७० ) पूर्व मार्गशीर्ष वदि १० के दिन उन्होंने दीक्षा ली । वि० सं० ५०१ ( ई. स. ५०८) पूर्व वैशाख सुदि १० के दिन १२ १ हिन्दूधर्मके अनुसार दीवाली पर्व आरंभ होनेके दो कारण बताये जाते हैं । (क) उस दिन विष्णु (भगवान )ने बलिराजाकी कैदसे देवोंको और लक्ष्मीजीको छुड़ाया था। इसलिए उसकी स्मृतिमें दीवाली पर्व मनाया जाता है । (ख) उस दिन श्रीरामचंद्रजीने रावणको मारकर पृथ्वीका भार कम किया था । और सारे देशमें आनंद मनाया गया था। उसीकी स्मृतिमें कार्तिकवदि अमावस्या के दिन आज भी आनंदोत्सव मनाया जाता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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