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जैन-रत्न
जब दूध, दही अग्नि आदि पैदा होंगे तब वह राजा अन्न पकाकर, लोगोंको, उसे खानेका उपदेश देगा।
" इस तरह जब दुःखमा काल बीत जायगा तब शतद्वार नामक नगरमें सातवें कुलकर राजाकी रानी भद्रादेवीके कोखसे श्रेणिकका जीव पुत्ररूपमें उत्पन्न होगा। उनके आयुष्य और शरीरादि मेरे समान होंगे । उनका नाम पद्मनाभ होगा । वे ही उत्सर्पिणी कालमें पहले तीर्थकर होंगे । ___ उसके बाद अवसर्पिणी कालकी तरह उल्टी तरहके हिसाबसे तेईस तीर्थकरोंके शरीर आयुष्य और अंतरमें अभिवृद्धि होगी । उनके नाम क्रमशः इस तरह होंगे___“ श्रेणिकका जीव पद्मनाभ नामक पहले तीर्थकर होंगे। सुपार्थका जीव सूरदेव नामक दूसरे तीर्थकर होंगे। पोट्टिलका जीव सुपार्श्व नामक तीसरे तीर्थकर होंगे । दृढायुका जीव स्वयंप्रभु नामके चौथे तीर्थकर होंगे । कार्तिक सेठका जीव सर्वानुभूति नामक पाँचवें तीर्थकर होंगे । शंख श्रावकका जीव देवश्रुत नामक छठे तीर्थकर होंगे । नंदका जीव उदय नामक सातवें तीर्थकर होंगे । सुनंदका जीव पेढाल नामक आठवें तीर्थकर होंगे। केकसीका जीव पोट्टिल नामक नवें तीर्थकर होंगे । रेयलीका जीव शतकीर्ति नामक दसवें तीर्थकर होंगे । सत्यकीका जीव सुव्रत नामक ग्यारहवें तीर्थकर होंगे। कृष्ण वासुदेवका जीव अमम नामक बारहवें तीर्थकर होंगे । बलदेवका जीव अकषाय नामक तेरहवें तीर्थकर होंगे । रोहिणीका जीव निष्पुलाक नामक चौदहवें तीर्थकर
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