SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 465
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३२ जैन-रत्न जब दूध, दही अग्नि आदि पैदा होंगे तब वह राजा अन्न पकाकर, लोगोंको, उसे खानेका उपदेश देगा। " इस तरह जब दुःखमा काल बीत जायगा तब शतद्वार नामक नगरमें सातवें कुलकर राजाकी रानी भद्रादेवीके कोखसे श्रेणिकका जीव पुत्ररूपमें उत्पन्न होगा। उनके आयुष्य और शरीरादि मेरे समान होंगे । उनका नाम पद्मनाभ होगा । वे ही उत्सर्पिणी कालमें पहले तीर्थकर होंगे । ___ उसके बाद अवसर्पिणी कालकी तरह उल्टी तरहके हिसाबसे तेईस तीर्थकरोंके शरीर आयुष्य और अंतरमें अभिवृद्धि होगी । उनके नाम क्रमशः इस तरह होंगे___“ श्रेणिकका जीव पद्मनाभ नामक पहले तीर्थकर होंगे। सुपार्थका जीव सूरदेव नामक दूसरे तीर्थकर होंगे। पोट्टिलका जीव सुपार्श्व नामक तीसरे तीर्थकर होंगे । दृढायुका जीव स्वयंप्रभु नामके चौथे तीर्थकर होंगे । कार्तिक सेठका जीव सर्वानुभूति नामक पाँचवें तीर्थकर होंगे । शंख श्रावकका जीव देवश्रुत नामक छठे तीर्थकर होंगे । नंदका जीव उदय नामक सातवें तीर्थकर होंगे । सुनंदका जीव पेढाल नामक आठवें तीर्थकर होंगे। केकसीका जीव पोट्टिल नामक नवें तीर्थकर होंगे । रेयलीका जीव शतकीर्ति नामक दसवें तीर्थकर होंगे । सत्यकीका जीव सुव्रत नामक ग्यारहवें तीर्थकर होंगे। कृष्ण वासुदेवका जीव अमम नामक बारहवें तीर्थकर होंगे । बलदेवका जीव अकषाय नामक तेरहवें तीर्थकर होंगे । रोहिणीका जीव निष्पुलाक नामक चौदहवें तीर्थकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy