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________________ ४१० जैन-रत्न टोको हुक्म दिया कि यह कोढ़ी जब बाहर निकले तब इसे कैद कर लेना। __ थोड़ी देरके बाद कोढ़ी बाहर निकला। सुभटोंने उसे घेर लिया; मगर सुभटोंको अचरजमें डाल, दिव्यरूप धारणकर वह कोढ़ी आकाशमें उड़ गया। सुभटोंने आकर श्रेणिकको यह हाल सुनाया।श्रेणिक अचरजमें पड़े। उन्होंने प्रभुसे पूछा:-"प्रभो ! वह कोढ़ी कौन था ?" महावीर बोले:-" वह देव था।" श्रेणिकने पूछा:-" तो वह कोढ़ी कैसे हुआ?" " अपनी देवी-मायासे।" कहकर प्रभने उसकी जीवन कथा सुनाई और कहा:-" देवसे पहलेकी इसकी योनी मेंडककी थी। इसी शहरके बाहरकी बावड़ीमें यह रहता था। जब हम यहाँ आये तो लोग हमें वंदना करने आने लगे। पानी भरनेवाली स्त्रियोंको हमारे आनेकी बातें करते इसने सुना । इसके मनमें भी हमें वंदना करनेकी इच्छा हुई । वह बावड़ीसे निकलकर हमें वंदना करने चला । रस्तेमें आते तुम्हारे घोड़ेके पैरों तले कुचलकर मर गया । शुभ भावनाके कारण मरकर वह दर्दुरांक नामका देवता हुआ। अनुष्ठानके बिना भी प्राणीको उसकी भावनाका फल मिलता है । उसने मेरे पैरोंमें गोशीर्ष चंदन लगाया था; परंतु तुम्हें वह कोढ़-रस दिखाई दिया था।" श्रेणिकने पूछा:-" जब आपको छींक आई तब वह अागलिक शब्द बोला, और दूसरोंको छींकें आई तब मांगलिक शब्द बोला, इसका क्या कारण है ?" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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