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जैन-रत्न mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm~~~~~~~~~ जवाब दिया था कि सर्वार्थसिद्धि विमानमें जायँगे । कारण, उस समय उनके भाव अति निर्मल थे।"
इस तरह अभी भगवानका कथन चल ही रहा था कि आकाशमें दुंदुभिनाद सुनाई दिया । श्रेणिकने पूछा:-" प्रभो ! यह दुंदुभिनाद कैसा है ?"
प्रभु बोले:-" राजन् ! प्रसन्नचंद्र मुनिको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है । उनका ध्यान निर्मलतम हुआ । वे शुक्ल ध्यानपर आरूढ हुए । उनके मोहिनी कर्मका और उसके साथ ही ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी और अन्तराय कर्मका भी क्षय हो गया । इनके क्षय होते ही उनको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई है।"
शुभ या अशुभ ध्यान ही प्राणियोंको सुखमें या दुःखमें डालते हैं। राजा श्रेणिकने पूछा:-"भगवन् ! केवलज्ञानका उच्छेद कब
होगा? उस समय विद्युन्माली नामक केवलज्ञानका उच्छेद ब्रह्मलोकके इन्द्रका सामानिक देवता
अपनी चार देवियोंके साथ प्रभुको वंदना करने आया हुआ था। उसे बताकर प्रभुने कहा:-"इस पुरुषसे केवलज्ञानका उच्छेद होगा । यानी इस भरतक्षेत्रमें इस अवसर्पिणी कालमें यह पुरुष अन्तिम केवली होगा।"
श्रेणिकने पृच्छा:-"क्या देवताओंको भी केवलज्ञान होता है ?" __ प्रभुने उत्तर दिया:-"नहीं यह देव सात दिनके बाद च्यवकर
राजगृहीके श्रेष्ठी ऋषभदत्तका पुत्र होगा । वैराग्य पाकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com