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________________ ४०६ जैन-रत्न श्रेणिक अपने परिवार और सैन्य सहित प्रभुके दर्शनको चला। रस्तेमें उसने राजर्षि प्रसन्नचंद्रको, एक पैरपर खड़े हो ऊँचा हाथ किये आतापना करते देखा । श्रेणिक भक्ति सहित उनको वंदना करके महावीर स्वामीके पास पहुँचा । और प्रदक्षिणा दे, वंदना कर, हाथ जोड़, बैठा व बोला:-"भगवन् मैंने इस समय आते हुए राजर्षि प्रसन्नचंद्रको उग्र तप करते देखा है। अगर वे इस समय कालधर्मको पावे तो कौनसी गति जायँगे ?" महावीर स्वामीने उत्तर दिया:-" सातवें नरकमें ।" श्रेणिकको आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगा,-क्या यह भी संभव है कि ऐसा महान तपस्वी भी नरकमें जायँ ? संभव है मेरे सुननेमें भूल हुई हो । उसने फिर पूछा:--"प्रभो ! राजर्षि प्रसन्नचंद्र यदि अभी कालधर्मको प्राप्त करें तो कौनसी गतिमें जायँगे ?" महावीर स्वामी बोले:--" सर्वार्थसिद्धि विमानमें।" श्रेणिकको और भी आश्चर्य हुआ । उसने पुनः पूछा:-- "स्वामिन् ! आपने दोनों बार दो जुदा जुदा बातें कैसे कहीं?" ___ महावीर स्वामी बोले:--" मैंने ध्यानके भेदोंसे जुदा जुदा बातें कही थीं । तुमने पहले प्रश्न किया तब प्रसन्नचंद्र मुनि ध्यानमें अपने मंत्रियों और सामंतोंके साथ युद्ध कर रहे थे और दूसरी बार पूछा तब वे अपनी भूलकी आलोचना कर रहे थे।" श्रेणिकने पूछा:--" ऐसी भूलका कारण क्या है ? " प्रभु बोले:--" रस्तेमें आते हुए तुम्हारे सुमुख और दुर्मुख नामके दो सेनापतियोंने राजर्षिको देखा। सुमुख बोला:-"ऐसा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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