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जैन-रत्न
यह शंका भी बिल्कुल व्यर्थ है। क्योंकि मैं क्षायिक ज्ञानी प्रत्यक्ष यहाँ मौजूद हूँ।" ___ अकंपितकी शंका मिट गई और उन्होंने अपने २०० शिष्यों के साथ दीक्षा ले ली। ___ उनके बाद अचलभ्रांता अपने शिष्यों सहित महावीरके पास आये । प्रभु बोले:-“हे अचलभ्राता! तुम्हें पाप पुण्यमें संदेह है। मगर यह शंका मिथ्या है । कारण, इस दुनियामें पाप पुण्यके फल प्रत्यक्ष हैं। संपत्ति, रूप, उच्च कुल, लोकमें सन्मान अधिकार
आदि बातें पुण्यका फल हैं। इनके विपरीत दरिद्रता, कुरूप, नीच कुल, लोकमें अपमान इत्यादि बातें पापका फल हैं।"
अचल भ्राताकी शंका मिट गइ और उन्होंने अपने ३०० शिष्योंके साथ दीक्षा ले ली।
उनके बाद मेतार्य प्रभुके पास आये। प्रभु बोले:-"हे मेतायें ! तुमको परलोकके विषयमें शंका है। तुम्हारा खयाल है कि, आत्मा पंच भूतोंका समूह है । उनका अभाव होनेसे
१ अचलभ्राताके पिताका नाम वसु और उनकी माताका नाम नंदा था। वे कोशल नगरीके रहनेवाले हारीत गोत्रीय ब्राह्मण थे। उनकी उम्र ६२ बरसकी थी। वे ४६ बरस गृहस्थ, १२ बरस छद्मस्थ
और २४ बरस केवली रहे थे। __२ मेतार्यके पिताका नाम दत्त और इनकी माताका नाम करुणा था। ये वत्स देशके तुंगिक नामक गाँवमें रहनेवाले कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे । इनकी उग्र ६२ बरसकी थी। ये ३६ बरस गृहस्थ, १० बरस छद्मस्थ और १६ बरस केवली रहे थे।
३ हिन्दुशास्त्रोंमे पृथ्वी, जल, वायु, अभि और आकाशको पंच भूत माना है।
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