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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३६९ wwwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm wmmmmmmmmmmmmm महावीर स्वामीपर तीन कारणोंसे उपसर्ग किये गये । (१) उनकी महत्ताका नाश करनेके लिए। उपसगोंके कारण और कर्ता इनमें शूलपाणी और संगम इन दोनों देवोंके और चंडकौशिकके उपसर्ग हैं । (२) पूर्वभवका वैर लेनेके लिए । इनमें सुदंष्ट्रका, और क्रोधसे पागलसा वनमाला वनमाला, पुकारता हुआ इधर उधर फिरने लगा। एक दिन वह राजमहलोंमें इसी तरह पुकारता हुआ गया । दैवयोगसे उसी समय राजा और वनमाला बिजली पड़नेसे मर गये । उनका मरना जान, वीरकका चित्त स्थिर हुआ । वह वैराग्यमय जीवन बिताने लगा। राजा और वनमाला मरकर हरिवर्ष क्षेत्रमें युगलिया जन्मे । वीरक भी मरकर वहीं व्यंतरदेव हुआ । उसने विभंगाज्ञानसे इस युगल जोड़ीको पहचाना और उनको, नरक गतिमें डालनेके इरादेसे, इस क्षेत्रमें ले आया और उनके शरीर व आयु कम कर दिये। उनके नाम हरि और हरिणी रक्खे । उन्हें सप्त व्यसनोंमें लीन किया । और तब वह अपने स्थानपर चला गया। हरि और हरिणी व्यसनोंमें तल्लीन मरे और नरकमें गये । इस तरह वीरकने उनसे वैर लिया। उनके वंशमें जो जन्मे वे हरिवंशके कहलाये। युगालिये न कभी इस क्षेत्रमें आते हैं और न उनकी आयु या देह ही कम होते हैं; परंतु ये दोनों बातें हुई। यह सातवाँ आश्चर्य है। (८)चमरेंद्रका सुधर्म देवलोकमें जाना—पातालमें रहनेवाले असुर कुमारोंका इन्द्र कभी ऊपर नहीं जा सकता परंतु चमरेंद्र गया। यह आठवाँ आश्चर्य है। (९) उत्कृष्ट अवगाहनावालोंका एक समय मोक्षमें जानाउत्कृष्ट अवगाहनावाले १०८ एक समयमें मोक्ष नहीं जाते; परंतु इस २४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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