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________________ ३५४ जैन-रत्न पारणा किये बिना तीनों प्रतिमाएँ की। फिर पारणा करने आनंद नामक गृहस्थके घर गये । वहाँ उसकी बहुला नामकी दासी बासी अन्न फेंकने वाली थी। प्रभुको देखकर उसने कहा-" हे साधो ! तुम्हें यह अन्न कल्पता है ? " महावीरने हाथ लंबे किये । दासाने वह अन्न हाथमें रख दिया । प्रभुने उसे खाया। देवताओंने पाँच दिव्य प्रकट किये । वहाँके राजाने बहुलाको दासीपनसे मुक्त किया । सानुयष्टिक गाँवसे विहारकर महावीर म्लेच्छोंसे भरी हुई दृढ भामिमें आये । वहाँ पेढाला नामक संगम देवकृत २० उपसर्ग गाँवके पास पेढाला नामक उद्यानके पोलास नामक चैत्यमें एक शिलापर, अठम तप सहित एक रात्रिकी प्रतिमासे रहे । उस समय सौधर्मेन्द्रने महावीर स्वामीको नमस्कार कर उनके धैर्यकी प्रशंसा की । संगम नामका एक देव उसको न सह सका । उसने महावीर स्वामीको ध्यानसे च्युत करना स्थिर किया। उसने १८ प्रतिकूल और २ अनुकूल उपसर्ग किये। प्रतिकूल उपसर्ग ये हैं। दिन रात तक प्रति दिन एक एक दिशाकी तरफ मुँह रक्खे । आठ दिशाओंमें एक पुद्गलपर दृष्टि रक्खे । उर्द्ध और अधो दिशावाले दिन उर्द्ध और अधो पुद्गलपर दृष्टि रक्खे । १-(क) इससे मालूम होता है कि ढाई हजार बरस पहले, उस सभ्यताके समयमें भी गुलामीकी अन्यायी प्रथा भारतमें थी । (ख) कल्पसूत्रमें इस तपका उल्लेख नहीं है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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