SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४० जैन-रत्न और एक शून्य गृहमे प्रतिमा धारण कर रहे । गोशालक दर्वाजेके पास बैठा। ___ पत्रकालसे विहारकर महावीर कुमार गाँवमें आये । वहाँ 'चंपकरमणीय ' नामक उद्यानमें काउसग्ग करके रहे । * १-ऊपर जैसी ही घटना पात्रकालमें भी हुई । यहाँ गोशाला हँसा, इससे पिटा । ___* यहाँ कुपनय नामका एक कुम्हार रहता था । वह बड़ा शराबी था। पार्श्वनाथजीकी परंपराके मुनिचंद्राचार्य अपने शिष्यों सहित उसके मकानमें ठहरे हुए थे। वे अपने शिष्य वर्द्धनको आचार्यपद सौंप जिनकल्पका अति दुष्कर प्रतिकर्म करते थे। गोशालक फिरता हुआ वहाँ जा पहुंचा। उसने चित्रविचित्र वस्त्रोंको धारण करनेवाले और पात्रादिक रखनेवाले श्रीपार्श्वनाथकी परंपराके उपर्युक्त साधुओंको देखा । उसने पूछा:-" तुम कौन हो ?" उन्होंने जवाब दिया:-" हम पार्श्वनाथके निग्रंथ शिष्य हैं।" गोशालक हँसा और बोला:-"मिथ्या भाषण करनेवालो, तुम्हें धिक्कार है ! वस्त्रादि ग्रंथीको धारण करनेवाले तुम निर्यथ कैसे हो ? जान पड़ता है कि तुमने आजीविकाके लिए यह पाखंड रचा है । वस्त्रादिके संगसे रहित और शरीरमें भी ममता नहीं रखनेवाले, जैसे मेरे धर्माचार्य हैं वैसे निग्रंथ होने चाहिए।" वे जिनेन्द्रको जानते नहीं थे, इससे बोले:-" जैसा तू है वैसे ही तेरे धर्माचार्य भी होंगे। कारण, वे अपने आप ही लिंग-साधुपन ग्रहण करनेवाले मालूम होते हैं । " इससे गोशाला नाराज हुआ और उसने शाप दिया:- "मेरे गुरुका तपतेज हो तो तुम्हारा उपाश्रय जल जाय ।" मगर उपाश्रय न जला । वह अफसोस करता चला गया । रातको मुनिचंद्र प्रतिमा धारण कर खड़े थे । कुपनय शराबमें मत्त आया। उसने मुनिको चोर समझकर इतना पीटा कि, उनकी मृत्यु हो गई। वे शुभ ध्यानके कारण मरकर देवलोक गये । देवोंने आकर उनके तपकी महिमा की । प्रकाश देखकर गोशालक बोला:-" आखिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy