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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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"अगर मेरे गुरुका तपतेज हो तो उपनंदका घर जल जाय।" एक व्यंतर देवने उपनंदका घर जला दिया ।
ब्राह्मण गाँवसे विहार कर महावीर चंपा नगरी गये । और १
विक्रम संवत ५११ (ई० सन्५६८) नगरातारा चामता पूर्वका चौमासा वहीं किया । वहाँ दो मासक्षमण करके चौमासा समाप्त किया।
चंपासे विहार कर प्रभु कोल्लाक गाँवमें आये और एक शून्य गृहमें कायोत्सर्ग करके रहे । गोशालक दाजेके पास बैठा।
कोल्लाकसे विहार कर महावीर पत्रकाल नामक गाँवमें आये
१-यह अंगदेशकी राजधानी थी। भागवतकी कथाके अनुसार हरिश्चंद्रके प्रपौत्र चंपने इसको बसाया था । जैनकथाके अनुसार पिताकी मृत्यु के शोकसे राजगृहमें अच्छा न लगनेसे कोणिक (अजातशत्रु) राजाने चंपेके एक सुंदर झाड़वाले स्थानमें नई राजधानी बसाई और उसका नाम चंपा रक्खा । वैदिक, जैन और बौद्ध तीनों सम्प्रदायवाले उसे तीर्थस्थान मानते हैं । उसके दूसरे नाम अंगपुर, मालिनी, लोमपादपुरी और कर्णपुरी आदि हैं । पुराने जैनयात्री लिखते हैं कि चंपा पटणासे १०० कोस पूर्व में है। उससे दक्षिणमें करीब १६ कोस पर मंदारगिरि नामका जैनतीर्थ है। यह अभी मंदारहिल नामक स्टेशनके पास है । चंपाका वर्तमान नाम चंपानाला है । वह भागलपुरसे तीन माइल है । उसके पास ही नाथनगर भी है । ( महावारनी धर्मकथाओ, पेज १७५)
२-गांवके ठाकुरका लड़का अपनी दासीको लेकर उस शून्य घरमें आया। अंधकारमें वहाँ किसीको न देख उसने अनाचारका सेवन किया। जाते समय गोशालकने दासीके हाथ लगाया । इससे युवकने उसे पीटा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com