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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित wrom मंख प्रभुके पास आकर ठहरा । महावीर स्वामीने मासक्षमणका पारणा विजय गृहपतिके घर कियाँ । देवताओंने पाँच दिव्य प्रकट किये । इससे गोशालक बड़ा प्रभावित हुआ। उसने प्रभुसे प्रार्थना की,-" आप मेरे धर्माचार्य हैं और मैं आपका धर्मशिष्य हूँ।" महावीर कुछ न बोले । तब वह खुद ही अपनेको उनका शिष्य बताने लगा। महावीर स्वामीने दूसरे मासक्षमणका पारणा आनंदके यहाँ और तीसरे मासक्षमणका पारणा सुनंदके यहाँ किया था। चौमासा समाप्त होनेपर महावीर वहाँसे विहार कर गये और चौथे मासक्षमणका पारणा कोल्लाक नामके गाँवमें बहुल नामक ब्राह्मणके घर किया । __ एक बार कार्तिकी पूर्णिमाके दिन गोशालकने सोचा,-ये बड़े ज्ञानी हैं तो आज मैं इनके ज्ञानकी परीक्षा लूँ। उसने पूछा:- हे स्वामी ! आज मुझे भिक्षामें क्या मिलेगा ?" सिद्धार्थने प्रभुके शरीरमें प्रवेश कर उत्तर दिया:-"बिगड़कर गोचरी लेने गये । सेठने भक्तिपूर्वक विधि सहित प्रभुको प्रतिलाभित किया और उसके घर रत्नवृष्टि आदि पंच दिव्य प्रकट हुए । गोशालक यह सब देख सुनकर प्रभुका, अपने मनहींसे, शिष्य हो गया। १-भगवान महावीर नीच कुलवालके घर भी आहार लेने जाया करते थे। इससे ऐसा जान पड़ता है कि उस समय नीच कुलवालेके यहाँसे शुद्ध आहार पानी लेने में कोई संकोच नहीं था । भगवती सूत्रमें लिखा है:-" हे गोतम xxxx राजगृह नगरमें उच्च, नीच और मध्य कुलमें यावत्-आहारके लिए फिरते मैंने विजयनामक गाथापतिके ( गृहपतिके ) घरमें प्रवेश किया ।" [श्रीरायचंद्र जिनागम संग्रहका भगवती सूत्र, १५ वां शतक, पेज ३७०] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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