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जैन-रत्न
अज्ञान प्रकट कर दूंगा ।" यह कहकर कुद्ध अच्छंदक महावीर स्वामीके पास आया । गाँवके कौतुकी लोग भी उसके साथ आये ।
अच्छंदकने एक तिनका अपनी उँगलियोंके बीचमें पकड़कर कहा:“बोलो, यह तिनका मुझसे टूटेगा या नहीं ?" उसन सोचा था,अगर ये कहेंगे कि टूटेगा तो मैं उसे नहीं तोडूंगा, अगर कहेंगे नहीं टूटेगा तो मैं उसे तोड़ दूंगा। और इस तरह उनकी बातको झूठ ठहराऊँगा । सिद्धार्थ बोला:-" यह नहीं टूटेगा।" वह ज्योंही उस तिनकेको तोड़नेके लिए तैयार हुआ कि उसकी पाँचों उँगलियाँ कट गई । यह देखकर गाँवके लोग हँसने लगे। इस तरह अपनी बेइजती होते देख अच्छंदक पागलकी तरह वहाँसे चला गया।
जिस समय अच्छंदक और सिद्धार्थकी बातें हो रही थीं उस समय इन्द्रने प्रभुका स्मरण किया था। उसने अवधिज्ञान द्वारा सिद्धार्थ और अच्छंदककी बातें जानी और प्रभुके मुखसे निकली हुई बात मिथ्या न होने देने के लिए उसने अच्छंदककी उँगलियाँ काट डाली। ____ अच्छंदकके चले जानेपर सिद्धार्थ बोला:-" वह चोर है।" लोगोंने पूछा:-" उसने किसका क्या चोरा है ? " सिद्धार्थ बोला:-" इस गाँवमें एक वीर घोष नामका सेवक है।" यह सुनते ही वीर घोष खड़ा हुआ और बोला:-“ क्या आज्ञा है ?" सिद्धार्थ बोला:-" पहले दस पल प्रमाणका एक पात्र तेरे घरसे चोरी गया है ? " वीरघोषने कहा:-"हाँ ।" सिद्धार्थ बोला:-“ अच्छंदकने उसे चुराया है। तेरे घरके पीछे पूर्व दिशा में सरगवा (खजूर ) का एक पेड़ है। उसके नीचे एक हाथका खड्डा खोदकर उसमें वह पात्र अच्छंदकने गाड़ा है । जा ले आ ।" वीरघोष गया और खोदकर पात्र ले आया । यह देखकर गाँवके लोग अच्छंदकको बुरा भला कहने लगे। सिद्धार्थ फिर बोला:-“ यहाँ कोई इन्द्रशर्मा नामका गृहस्थ है १" इन्द्रशर्मा हाथ जोड़कर खड़ा हुआ
और बोला:-"क्या आज्ञा है !" सिद्धार्थ बोला:-" पहले तुम्हारा एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com