SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३२५ महावीर स्वामीने अर्द्ध अर्द्ध मासक्षमण करके चातुर्मास व्यतीत किया। चौमासा समाप्त होनेपर वे अन्यत्र विहार कर गये। जब प्रभ विहार करने लगे तब यक्षने महावीर स्वामीके चरणोंमें नमस्कार किया और कहा:-" हे नाथ ! आपके समान कौन उपकारी होगा कि जिनने अपने सुखकी ही नहीं बल्के जीवनकी भी परवाह न करके मुझे सन्मार्गमें लगानेके लिए, मेरे स्थानमें रह कर मुझ पापीने जो कष्ट दिये वे सब शांतिसे सहे । प्रभो ! मेरे अपराधोंको क्षमा कीजिए।" निर्वैर महावीर स्वामी उसे आश्वासन देकर अन्यत्र विहार कर गये । दीक्षा लियेको एक बरस हो जानेके बाद महावीर स्वामी सरक दुःख का खयाल आये और गाँवके बाहर उद्यानमें प्रतिमा र विहार करते हुए फिर मोराक गाँव धारण कर रहे। __उस गाँवमें अच्छंदक नामका एक ज्योतिषी बसता था और यंत्र मंत्रादिसे अपनी आजीविका चलाता था । उसका प्रभाव सारे गाँवमें था। ( उसके प्रभावके कारण किसीने प्रभुकी पूजा प्रतिष्ठा नहीं की इसलिए ) उसके प्रभावको सिद्धार्थ न सह सका इससे, और लोगोंसे प्रभुकी पूजा कराने के इरादेसे, उसने गाँवके लोगोंको चमत्कार दिखाया । इससे लोग अच्छंदक की १--आधा महीना यानी पन्द्रह दिन उपवास करके पारणा करना; फिर पन्द्रह दिन उपवास करके पारणा करना । इस तरह चौमासके साढ़े तीन महीनेमें प्रभुने केवल छः बार आहारपानी लिया था। २-अच्छदकका पूरा हाल त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्रसे यहाँ अनुदित किया जाता है,-" उस समय उस (मोराक) गाँवमें अच्छंदक नामका एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy