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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३२३ प्रभु उससे भी न डरे । तब उस दुष्टने यमराजके पाशके समान भयंकर सर्पका रूप धारण किया । अमोघ विष-सरके समान उस सर्पने प्रभुके शरीरको दृढताके साथ कस लिया और डसने लगा । जब सर्पका भी कोई असर न हुआ तब उसने प्रभुके सिर, आँखें, मूत्राशय, नासिका, दाँत, पीठ और नाक इन सात स्थानोंपर पीड़ा उत्पन्न की । वेदना इतनी तीव्र थी कि, सातकी जगह एककी पीड़ा ही किसी सामान्य मनुष्यके होती तो उसका प्राणांत हो जाता; मगर महावीर स्वामीपर उसका कुछ भी असर न हुआ।" जब शूलपाणि प्रभुको कोई हानि न पहुँचा सका तब उसे अचरज हुआ और उसने प्रभुसे क्षमा माँगी । इन्द्रका नियत किया हुआ सिद्धार्थ नामका देव भी पीछेसे आया और उसने शूलपाणि यक्षको धमकायाँ । यक्ष शांत रहा । तब सिद्धार्थने उसे धर्मोपदेश दिया । यक्ष सम्यक्त्व धारण कर प्रभुकी भक्ति करने लगा। रातभर महावीर स्वामीका शरीर उपसर्ग सहते सहते शिथिल हो गया था इसलिए उन्हें सवेरा होते होते कुछ नींद आ गई । उसमें उन्होंने दस स्वम देखे । १-भगवानपर रातभर उपसर्ग हुए मगर सिद्धार्थ न मालूम कहाँ लापता रहा । जब कष्ट सहकर महावीरने कष्टदाताके हृदयको बदल दिया तब सिद्धार्थ देवता यक्षको धमकाने आया । इससे मालूम होता है कि कर्मके भोग भोगने ही पड़ते हैं किसीकी मदद कोई काम नहीं देती। मनुष्य आप ही शांतिसे कष्ट सहकर दुःखोंसे मुक्त हो सकता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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