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________________ ३२२ जैन-रत्न शूलपाणि यक्षके मंदिरमें ठहरनेकी गाँवके लोगोंसे महावीर स्वामीने आज्ञा चाही । लोगोंने यक्षका भय बताकर कहा:" इस जगह जो कोई मनुष्य रातको ठहरता है उसे यक्ष मार डालता है, इसलिए आप अमुक दूसरे स्थानपर ठहरिए ।" निर्भय हृदयी महावीरने वहीं रहनेकी इच्छा प्रकट की और लाचार होकर गाँवके लोगोंने अनुमति दी । भगवानको अपने मंदिरमें देख यक्ष बड़ा नाराज हुआ और उसने उनको अनेक तरहसे कष्ट पहुँचाया । श्रीमद् हेमचंद्राचार्यने उसका वर्णन इस तरह किया है “प्रभु जहाँ कायोत्सर्ग करके रहे थे वहाँ व्यंतरने अट्ट हास्य किया । उस भयंकर अट्ट हास्यसे चारों तरफ ऐसा मालूम होने लगा मानों आकाश फट गया है और नक्षत्र मंडल टूट पड़ा है । xxx मगर प्रभुके हृदयमें इसका कोई असर नहीं हुआ, तब उसने भयंकर हाथीका रूप धारण किया; परंतु महावीर स्वामीने उसकी भी परवाह न की । तब उसने भूमि और आकाशके मानदंड जैसे शरीरवाले पिशाचका रूप धरा; मगर शूलपाणि यक्षका मंदिर भी है और उसकी प्रतिमा भी ।" परंतु हमें यह अनुमान ठीक नहीं जान पड़ता । कारण (१) मोराक मगधमें था। मगधसे चौमासेके १५ दिन बिताकर, बाकी साढ़े तीन महीने बितानेके लिए कठियावाड़में आ नहीं सकते थे। आते तो आधेसे ज्यादा चौमासा रस्तेहीमें बीत जाता । (२) चौमासा समाप्त होनेपर फिर भगवान मोराक गाँवमें जाते हैं । इससे साफ है कि अस्थि गाँव या वर्द्धमान गाँव कहीं मगधमें या इसके आसपास ही होना चाहिए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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