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________________ ३१८ जैन-रत्न दीक्षाके समय प्रभुके शरीररप देवताओंने गोशीर्ष चंदन आदि सुगंधित पदार्थोंका विलेपन किया भक्तिनात उपसर्ग था । इससे अनेक भँवरे और अन्य जीवजंतु प्रभुके शरीरपर आ आकर डंख मारते थे और सुगंधका रसपान करनेकी कोशिश करते थे। अनेक जवान प्रभुके पास आ आकर पूछते थे:-" आपका शरीर ऐसा सुगंधपूर्ण कैसे रहता है ? हमें भी वह तरकीब बताइए; वह ओषधि दीजिए जिससे हमारा शरीर भी सुगंधमय रहे ।" परंतु मौनावलंबी प्रभुसे उन्हें कोई जबाब नहीं मिलता। इससे वे बहुत क्रुद्ध होते और प्रभुको अनेक तरहसे पीड़ा पहुँचाते । ___अनेक स्वेच्छा-विहारिणी स्त्रियाँ प्रभुके त्रिभुवन-मन-मोहन रूपको देखकर काम पीड़ित होती और दवाकी तरह प्रभु-अंगसंग चाहती; परंतु वह न मिलता । वे अनेक तरहसे प्रभुको उपसर्ग करती और अंतमें हार कर चली जातीं। महावीर स्वामी विहार करते हुए मोराक नामक गाँवके पास आये। वहाँ दुइज्जंतक जातिके तापस रहते दुइजंतक तापसोंके थे। उन तापसोका कुलपति सिद्धार्थ आश्रममें राजाका मित्र था। उसने प्रभुसे मिलकर वहीं रहनेकी प्रार्थना की। प्रभु रात्रिकी प्रतिमा धारण कर वहीं रहे । दूसरे दिन सवेरे ही जब वे विहार करने लगे तब कुलपतिने आगामी चातुर्मास वहीं न्यतीत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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