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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३१७ कर्मोंका नाश कर केवलज्ञान प्राप्त करनेके लिए किन्हीं तीर्थकरने आज तक न किसीकी सहायता ली है और न भविष्यमें लेहींगे। वे हमेशा निजात्म-बलहीसे कर्मशत्रुओंका नाश कर मोक्षलक्ष्मीको प्राप्त करते हैं।" इन्द्र मौन हो गया । वह क्या बोलता ? प्रभुका कथन स्वावलंबनका और उन्नत बननेका राजमार्ग है । इसके विपरीत वह क्या कहता ? वह प्रभुको नमस्कार कर वहाँसे चला । जाते. वक्त सिद्धार्थ नामके व्यंतर देवको उसने आज्ञा की:-"तू प्रभुके साथ रहना और ध्यान रखना कि कोई इनपर प्राणांत उपसर्ग न करे।" प्राणांत उपसर्ग होनेपर भी तीर्थकर कभी नहीं मरते । कारण (१) उनके शरीर 'वज्रऋषभ नाराच । संहननवाले होते हैं (२) वे निरुपक्रम* आयुष्यवाले होते हैं। दूसरे दिन छहका पारणा करनेके लिए कोल्लांक गाँवमें गये । बहाँ बहुल नामक ब्राह्मणके छह (बेला ) का पारण घर प्रभुने परमानसे ( खीरसे) पारणा किया। देवताओंने उसके घर वसुधारादि पाँच दिव्य प्रकट किये ।। * आयु दो तरहकी होती है । एक सोपक्रम और दूसरी निरुपक्रम । सात तरहके उपक्रमोंमेंसे-घातोमेसे किसी भी एक उपक्रमसे किसीकी आयु जल्दी समाप्त हो जाती है उसे सोपक्रम आयुवाला कहते हैं । व्यवहारकी भाषामें हम कहते हैं इसकी आयु टूट गई है । निरुपक्रम आयु कभी किसी भी आघातसे नहीं टूटती। १-क्षत्रिय कुंडसे राजगृह जाते समय रस्तेमें कहीं यह गाँव होगा और अब इसका कोई निशान नहीं रहा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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