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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित २९१ कषायवाला हूँ इसलिए काषाय (रंगीन ) वस्त्र पहनूँगा । सचित्त जलसे अनेक जीवोंकी विराधना होती है इसलिए संकट सहकर भी मुनि सचित्त जल नहीं लेते; मगर मैं तो संकट सहनेमें असमर्थ हूँ इसलिए हमेशा सचित्त जलका उपयोग करूँगा । इस तरह सुखसे रहनेके लिए मरीचिने गृहस्थ और साधुके बीचका रस्ता निकाला और त्रिदंडी सन्यास ग्रहण किया। ऐसा विचित्र वेष देखकर लोग उससे धर्म पूछते थे; मगर वह लोगोंको शुद्ध जैनधर्मका ही उपदेश देता था। जब कोई उसे पूछता कि, तुमने ऐसा विचित्र वेष क्यों बनाया है तो वह जवाब देता,-"मैं इतना कठिन तप नहीं कर सकता इसीलिए ऐसा वेष बनाया है।" _एक बार महाराज भरत चक्रवर्तीके प्रश्नपर भगवान ऋषभदेवने उनके बाद होनेवाले तीर्थंकरों और चक्रवर्तियों आदिके नाम बताये । भरतने पूछा:-"प्रभु इस समवशरणमें भी कोई ऐसा जीव है जो इस चौबीसीमें तीर्थकर होगा ?" भगवानने जवाब दिया:-" तुम्हारा पुत्र मरीचि भरतक्षेत्रमें महावीर नामका चौबीसवाँ तीर्थकर होगा, पोतनपुरमें त्रिपृष्ठ नामका पहला वासुदेव होगा और महाविदेह क्षेत्रकी मूकापुरीमें प्रियमित्र नामका चक्रवर्ती होगा।" फिर भरत उठकर मरीचिके पास गये और वंदना करके उन्होंने सारा हाल कहा । सुनकर मरीचि खुशीसे नाचने लगा और कहने लगा,-"दुनिया मेरे समान कौन कुलीन होगा कि जिसके पिता पहले चक्रवर्ती हैं, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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