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________________ २३ श्री पार्श्वनाथ-चरित २८१ AAAA आया है और वह पंचाग्नि तपकी घोर तपस्या कर रहा है । उसीके लिए लोग ये भेटं लेजा रहे हैं। पार्श्वकुमार भी उस तपस्वीको देखनेके लिए गये। ___ यह कठ तपस्वी कमठका जीव था। जो सिंहके भवसे मरकर अनेक योनियोंमें जन्मता और दुःख उठाता हुआ एक गाँवमें किसी गरीब ब्राह्मणके घर जन्मा । उसका जन्म होनेके थोड़े ही दिन बाद उसके मातापिताकी मृत्यु हो गई । वह निराधार, बड़ी तकलीफें उठाता इधर उधर ठुकराता बड़ा हुआ । जब वह अच्छी तरह भलाई बुराई समझने लगा तब उसने एक दिन किसीसे पूछा:-"इसका क्या कारण है कि मुझे तो पेटभर अन्न और बदन ढकनेको फटे पुराने कपड़े भी बड़ी मुश्किलसे मिलते हैं और कइयोंको मैं देखता हूँ कि उनके घरोंमें मेवे मिष्टान्न पड़े सड़ते हैं और कीमती कपड़ोंसे संदूकें भरी पड़ी हैं ?" उसने जवाब दिया:-"यह उनके पूर्व भवमें किये तपका फल है।" उसने सोचा,-मैं भी क्यों न तप करके सब तरहकी सुखसामग्रियाँ पानेका अधिकारी बनें । उसने घरबार छोड़ दिये और वह खाकी बाबा बन वनमें रहने, कंदमूल खाने और पंचाग्नि तप करने लगा। __त्याग और संयम चाहे वे अज्ञानपूर्वक ही किये गये हों, कुछ न कुछ फल दिये बिना नहीं रहते । कठके इस अज्ञान तपने भी फल दिया । लोगोंमें उसकी प्रतिष्ठा बढ़ी और वह पुजने लगा। उस समय वह फिरता फिरता बनारस आया था और शहरके बाहर धूनी लगाकर पंचाग्नि तप कर रहा था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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