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________________ २३ श्री पार्श्वनाथ- चरित २७७ राजा प्रसेनजितने अपनेको यवनके सामने लड़ने में असमर्थ पा उत्तर दिया:- " मैं एक महीने के बाद आपको निश्चित जवाब दूँगा । " और मुझे आपके पास रवाना किया । राजा यवनने शहरको इस तरह घेर रक्खा है कि, एक परिंदा भी न अंदर जा सकता है और न बाहर निकल सकता है । मैं बड़ी कठिनतासे आपके पास आया हूँ । मेरा नाम पुरुषोत्तम है और राजाका मैं मित्र हूँ । अब आपको जो ठीक जान पड़े सो कीजिए । " राजदूतकी बातें सुनकर अश्वसेन बड़े क्रुद्ध हुए और बोले:“ यवनकी यह मजाल कि, मेरी पुत्रवधूको रोक रक्खे | मैं उस दुष्टको दंड दूँगा | सेनापति जाओ ! मेरी फौज तैयार करो ! मैं आज ही रवाना होऊँगा ।" पवनवेगसे सारे शहरमें यह बात फैल गई। लोग यवन राजाके कृत्यको अपना अपमान समझने लगे और शहर के कई ऐसे लोग भी जो सिपाही न थे सिपाही बनकर लड़ाईमें जानेको तैयार हो गये । जब पार्श्वकुमारको ये समाचार मिले तो वे अपने पिताके पास आये और बोले :- " पिताजी ! आपको एक मामूली राजापर चढ़ाई करनेकी कोई जरूरत नहीं है । ऐसों के लिए आपका पुत्र ही काफी है । आप यहीं आराम कीजिए और मुझे आज्ञा दीजिए कि, मैं जाकर उसे दंड दूँ | " बहुत आग्रहके कारण पिताने पार्श्वकुमारको युद्धमें जाने की आज्ञा दी । पार्श्वकुमार हाथीपर सवार होकर रवाना हुए। पहले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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