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________________ २७२ जैन-रत्न wmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm....~~. इसलिए हमारी सखी राजकुमारी पद्माको भी काम करना पड़ता है। कल इधर कोई दिव्य ज्ञानी आये थे और उन्होंने कहा था:"रत्नावली! तुम चिन्ता न करो। तुम्हारी कन्या चक्रवर्ती सुवर्णबाहुकी रानी होगी । उसे उसका घोड़ा बेकाबू होकर यहाँ ले आयगा ।" महाराज! ज्ञानीकी बात आज सच हुई है।" राजाने पूछा:-" श्रीमतीजी! आपका नाम क्या है ? और गालव मुनि अभी कहाँ गये हैं ?" उसने उत्तर दियाः"महाराज ! मेरा नाम नंदा है । गालव मुनि उन्हीं ज्ञानी मुनिको पहुँचाने गये हैं, जिनका मैंने अभी जिक्र किया है।" इतनेहीमें दूर घोड़ोंकी टापें सुनाई दी और धूल उड़ती नजर आई । राजाने समझा,-संभवतः मेरे आदमी मुझे ढूँढते हुए आ पहुंचे हैं । चलूँ उनसे मिलकर उन्हें संतोष हूँ । सुवर्णबाहु चले । सुनंदा पद्माको लेकर झोंपड़ीमें गई । राजा अपने आदमियों को बाहर सरोवरके किनारे बैठनेकी सूचना कर वापिस बगीचेमें आ बैठा। नंदाने जाकर गालव ऋषिको-जो उसी समय लौटकर आ गये थे—सुवर्णबाहुके आनेके समाचार सुनाये । गालव मुनि खुश हुए । वे रत्नावली, पद्मा और नंदाको लेकर राजाके पास आये । राजाने उठकर उन्हें नमस्कार किया और कहा:" ऋषिवर! आपने क्यों तकलीफ की ? मैं ही खुद आपके पास हाजिर हो जाता।" गालव ऋषि बोले:-" एक तो आप अतिथि हैं, दूसरे प्रजाके रक्षक हैं और तीसरे मेरी भानजी पद्माके स्वामी होने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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