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________________ २३ श्री पार्श्वनाथ-चरित २६७ त्याग कर दिया। कुछ देरके बाद वे ऐसे मूञ्छित हुए कि फिर न उठे। मरुभूतिका जीव किरणवेगके भवमें शुभ भावोंसे मरा और बारहवें देवलोकमें जंबू द्रुमावर्त नामके ५ पाँचवाँ भव (बारहवें विमानमें बाईस सागरोपमकी आयुवाला देवलोकमें देव ) देवता हुआ और सुख भोगने लगा। कमठका जीव महासर्पकी योनिमें जलकर मरा और तमःप्रभा नामके नरकमें, बाईस सागरोपमकी आयु और ढाई सौ धनुषकी कायावाला नारकी जीव हुआ। जंबूद्वीपके पश्चिम महाविदेहमें सुगंध नामका प्रति है। उसमें शुभंकरा नामकी एक नगरी थी। उसमें छठा भव(वज्रनाभ राजा) वज्रवार्य नामका राजा राज्य करता था। उसकी लक्ष्मीवती नामकी रानीके गर्भसे मरुभूतिका जीव देवलोकसे चयकर जन्मा । उसका नाम. वज्रनाभ रक्खा गया । युवा होनेपर ब्याह हुआ। कुछ कालके बाद वज्रवीर्य राजाने वज्रनाभको राज्य देकर दीक्षा लेली। वज्रनाभके कुछ कालके बाद चक्रायुध नामका पुत्र हुआ। जब वह बड़ा हुआ तब राजा वज्रनाभने चक्रायुधको राज्य देकर क्षेमंकर मुनिके पाससे दीक्षा ले ली। अनेक तरहकी तपस्याएँ करनेते मुनिको आकाशगमनकी लब्धि मिली । एक बार वज्रनाभ मुनि आकाशमार्गसे सुकच्छ नामके प्रांतमें गये। कमठका जीव भी नरकसे निकलकर सुकच्छ प्रतिके ज्वलन गिरिके भयंकर जंगलमें भीलके घर जन्मा । उसका नाम. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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