SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३ श्री पार्श्वनाथ-चरित २६५ 1000000000000000000000 एक कीडीको भी तकलीफ न हो इस बातका पूरा ध्यान रखता था। __एक दिन पानी पीने गया। वहाँ दलदलमें फँस गया । उससे निकला न गया । उधर कमठके उस हत्यारे कामसे सारे तापस उससे नाराज हुए और उसे अपने यहाँसे निकाल दिया। वह भटकता हुआ मरकर साँप हुआ । वह साँप फिरता हुआ वहाँ आ निकला जहाँ मरुभूति हाथी फँसा हुआ था। उसने मरुभूतिको देखा और काट खाया। मरुभूतिने अपना मृत्युकाल समीप जान सब माया ममता दिका त्याग कर दिया । मरकर वह ३ तीसरा भव ( सह- सहस्रार देवलोकमें सत्रह सागरोपमकी स्रार देवलोकमें देव ) आयुवाला देव हुआ । हथिनी वरुणी भी भावतप कर मरी और दूसरे देवलोकमें देवी हुई। फिर बह दूसरे देवलोकके देवोंको छोड़ सहस्रार देवलोकमें मरुभूतिके जीव देवकी देवांगना बनकर रही । कमठका जीव भी मरकर पाँचवें नरकमें सत्रह सागरोपमकी आयुवाला नारकी हुआ। प्राग्विदेहके सुकच्छ नामक प्रांतमें तिलका नामकी नगरी थी। उसमें विद्युद्गति नामका खेचर ४ चौथा भव (किरणवेग) राजा था। उसकी रानी कनकतिलकाके गभसे, मरुभूतिका जीव देवलोकसे चयकर, पैदा हुआ । मातापिताने उसका नाम किरणवेग रखा । युवा होनेपर पद्मावती आदि राजकन्याओंसे उसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy