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________________ २६० जैन-रत्न सौ वर्ष कौमारावस्थामें, एक वर्ष संयम लेकर छद्मस्थावस्थामें और ५ सौ वर्ष केवली अवस्थामें रही थीं। ___ भगवान नेमिनाथ तीन सौ वर्ष कौमारावस्थामें और ७ सौ वर्ष साधुपर्यायमें रह, १ हजार वर्षकी आयु बिता, नमिनाथजीके मोक्ष जानेके बाद पाँच लाख वर्ष बीते तब, मोक्ष गये। उनका शरीरप्रमाण १० धनुष था। भगवान नेमिनाथके तीर्थमें नवें वासुदेव कृष्ण, नवें बलदेव बलभद्र और नवें प्रति-वासुदेव जरासंध हुए हैं । २३ श्रीपार्श्वनाथ-चरित कमठे धरणेन्द्रे च, स्वोचितं कर्म कुर्वति । प्रभुस्तुल्यमनोवृत्तिः, पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः॥ भावार्थ-अपने स्वभावके अनुसार कार्य करनेवाले कमठ और धरणेन्द्रपर समान भाव * रखनेवाले पार्श्वनाथ प्रभु तुम्हारा कल्याण करें। जंबूद्वीपके भरत क्षेत्रमें पोतनपुर नामका नगर था। उसमें अरविंद नामका राजा राज्य करता था। १ प्रथम भव (मरुभूति) उसके परम श्रावक विश्वभूति नामक ब्राह्मण * कमठने प्रभुको दुःख दिया था और धरणेन्द्रने प्रभुकी दुःखसे रक्षा की थी; परंतु भगवानने न कमठपर रोष किया था और न धरणेन्द्रपर प्रसन्नता . दिखाई थी। दोनोंपर उनके द्वेष और रागरहित समान भाव थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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