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________________ २५६ जैन-रत्न ली । उसी समय श्रीकृष्णने नियम लिया था कि, मैं अबसे किसी कन्याका ब्याह न करूँगा, इसलिए उनकी अनेक कन्या ओंने भी दीक्षा ले ली । कनकवती, रोहिणी और देवकीके सिवा वसुदेवकी सभी पत्नियोंने दीक्षा ली। ___ कनकवती संसारमें रहते हुए भी वैराग्यमय जीवन बिताने लगी । इससे उनके घातिया काँका नाश हुआ और उन्हें केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई। फिर वे अपने आप दीक्षा लेकर वनमें गई । एक महीनेका अनशन कर उन्होंने मोक्ष पाया। ___ एक बार श्रीकृष्णने प्रभुसे पूछा:--" भगवन् ! आप चौमासेमें विहार क्यों नहीं करते हैं ?" भगवानने उत्तर दिया:" चौमासेमें अनेक जीवजंतु उत्पन्न होते हैं । विहार करनेसे उनके नाशकी संभावना रहती है। इसीलिए साधुलोग चौमासेमें विहार नहीं करते हैं। श्रीकृष्णने भी नियम लिया कि म भी अबसे चौमासेमें कभी बाहर नहीं निकलूंगा। एक बार नेमिनाथ प्रभुके साथ जितने साधु थे उन सबको श्रीकृष्ण द्वादशावर्त वंदना करने लगे। उनके साथ दूसरे राजा और वीरा नामका जुलाहा-जो श्रीकृष्णका बहुत भक्त था-भी वंदना करने लगे । और तो सब थककर बैठ गये। परन्तु वीरा जुलाहा तो श्रीकृष्णके साथ वंदना करता ही रहा । जब वंदना समाप्त हो चुकी तो श्रीकृष्णने प्रभुसे विनती की:-" आज मैं इतना थका हूँ कि जितना ३६० युद्ध किये उसमें भी नहीं थका था ।" प्रभुने कहा:-" आज तुमने बहुत पुण्य उपार्जन किया है। तुमको क्षायिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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