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________________ २२ श्री नेमिनाथ-चरित २५५ इसने शादी की और मेरी पुत्रीको दुःख दिया । इसको इसके पाखंडका दंड देना ही उचित है । वह मसानमें जलती हुई चितामेंसे मिट्टीके एक ठीकरेमें आग भर लाया और वह ठीकरा गजसुकुमाल मुनिके सिरपर रख दिया। गजसुकुमालका सिर जलने लगा; परन्तु वे शांतिसे ध्यानमें लगे रहे । इससे उनके कर्म कट गये । उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। उसी समय उनका आयुकर्म भी समाप्त हो गया और वे मरकर मोक्ष गये। दूसरे दिन श्रीकृष्णादि यादव प्रभुको वंदना करने आये। गजसुकुमालको वहाँ न देखकर श्रीकृष्णने उनके लिए पूछा । भगवानने सारा हाल कह सुनाया। सुनकर उन्हें बड़ा क्रोध आया। भगवानने उन्हें समझाया,-"क्रोध करनेसे कोई लाभ नहीं है ।" मगर उनका क्रोध शांत न हुआ । जब वे वापिस द्वारकामें जा रहे थे तब उन्होंने सामनेसे सोमशर्माको आते देखा। श्रीकृष्णका क्रोध द्विगुण हो उठा । वे उसे सजा देनेका विचार करते ही थे कि, सोमशर्माका सिर अचानक फट गया और वह जमीनपर गिर पड़ा । उसको सजा देनेकी इच्छा पूरी न हुई । उन्होंने उसके पैरोंमें रस्सी बंधवाई, उसे सारे शहरमें घसीटवाया और तब उसको पशुपक्षियोंका भोजन बननेके लिए जंगलमें फिकवा दिया। ... गजसुकुमालकी दशासे दुखित होकर अनेक यादवोंने, वसुदेवके विना नौ दशाहोंने, प्रभुकी माता शिवादेवीने, प्रभुके सात सहोदर भाइयोंने, श्रीकृष्णके अनेक पुत्रोंने, राजीमतीने, नंदकी कन्या एकनाशाने और अनेक यादव स्त्रियोंने दीक्षा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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