________________
२१८
जैव-रत्व
दिया:--" जितशत्रु राजाके घोड़ेके सिवा और किसीने भी धर्म धारण नहीं किया" । जितशत्रु राजाने पूछा:-" यह घोड़ा कौन है सो कृपा करके कहिए । " प्रभुने उत्तर दिया:__"पद्मनी खण्ड नगरमें जिनधर्म नामका एक सेठ था। उसका सागरदत्त नामका मित्र था । वह हमेशा जैनधर्म सुनने आया करता था । एक दिन उसने व्याख्यानमें सुना कि जो अस्तबिम्ब बनबाता है, वह जम्मान्तरमें संसारका मंथन करनेवाले धर्मको पाता है । यह जानकर सागरदत्तने एक जिन-प्रतिमा बमवाई और धूम धामसे साधुओंके पाससे उसकी प्रतिष्ठा
___ सागरदत्त निध्यात्वी होनेसे पहले उसने नगरके बाहर एक शिवका मंदिर बनवाया था। एक बार उत्तरायण पर्वके दिन सामरदत्त वहाँ गया । उस मन्दिरके पुजारी पूजाके लिए पहिलेके रक्खे हुए घीके घड़े जल्दी-जल्दी स्वींचकर उठा रहे थे । बहुत दिन तक एक जगह रखे रहनेसे घड़ोंके नीचे जीव पैदा हो गये थे इस लिए उन्हें खींचकर उठानेसे कीड़े पर जाते थे। और कई उनके पैरोंके नीचे कुचले जाते थे। यह देखकर सागरदत्त उन कीड़ोंको अपने कपड़ेसे एक तरफ इटाने लगा । उसे ऐसा करते देख एक पुजारी बोला:-" अरे तुझे इन सफेदपोश यतियोंने यह नई शिक्षा दी है क्या ?"
और तब उसने पैरोंसे और भी कई कीड़ोंको कुचल दिया। सागरदत्त दुखी होकर पुजारियोंके आचार्यके पास गया । आचार्यने उस पापकी उपेक्षा की। तब सागरदत्तने विचारा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com