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________________ १९६ जैन - रत्न कहा - " कोई भय नहीं है । तू निर्भय रह । " उसी समय एक बाज आया और बोला :- " राजन् ! इस कबूतरको छोड़ दो। यह मेरा भक्ष्य है । मैं इसको खाऊँगा । " राजाने उत्तर दिया:-- “ हे बाज ! यह कबूतर मेरी शरण में आया है । मैं इसको नहीं छोड़ सकता । शरणागतकी रक्षा करना क्षत्रियों का धर्म है । और तू इस बिचारेको मारकर कौनसा बुद्धिमानीका काम करेगा ? अगर तेरे शरीरपर से एक पंख उखाड़ लिया जाय तो क्या यह बात तुझे अच्छी लगेगी ? " बाज बोला :- " पंख क्या पंखकी एक कली भी अगर कोई उखाड़ ले तो मैं सहन नहीं कर सकता । " राजा बोला :- " हे बाज ! अगर तुझे इतनीसी तकलीफ भी सहन नहीं होती है तो यह विचारा प्राणांत पीडा कैसे सह सकेगा ? तुझे तो सिर्फ अपनी भूख ही मिटाना है । अतः तू. इसको खानेके बजाय किसी दूसरी चीजसे अपना पेट भर और इस बिचारे के प्राण बचा । " बाज बोला :-- “ हे राजा ! जैसे यह कबूतर मेरे डरसे व्याकुल हो रहा है वैसे ही मैं भी भूख से व्याकुल हो रहा हूँ । यह आपकी शरण में आया है । कहिए मैं किसकी शरण में जाऊँ ? अगर आप यह कबूतर मुझे नहीं सौंपेंगे तो मैं भूख से मर जाऊँगा । एकको मारना और दूसरे को बचाना यह आपने कौनसा धर्म अंगीकार किया है ? एकपर दया करना और दूसरे पर निर्दय होना कौन से धर्मशास्त्रका सिद्धांत है ! हे राजा ! महरबानी करके यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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